“बड़े संगदिल हो लाल भैया तुम! …..चोट खाकर भी तुम्हें पीड़ा नहीं होती और मैं बिना चोट खाए ही पीड़ित हो जाती हूँ….”
“कैसे?”
“तुम्हारे माथे पर चोट भी लगी और अच्छी भी हो गयी…..उस दिन तुम्हारी गोली मुझे लगी भी नहीं और पीड़ा मुझे आजतक है…यहीं अंतर है लाल भैया!”
“कैसा अंतर ?”
“नारी और पुरुष में…..अवलंब और अवलम्बित में…..लाल और रेखा में….”
“लाल क्या है और रेखा क्या है?”
“लाल है आसमान पर चमकता हुआ चाँद और रेखा है चाँद की रौशनी से चमकती हुई जमीन पर शीशे की पतली लकीर…..समझ गए?”
“रेखा है जीवन की प्रेरणा और लाल है जीवन की गति…..प्रेरणा के बिना गति का कोई महत्त्व नहीं है रेखा….”
“यह तो अपनी अपनी व्याख्या हुई लाल भैया! हर कोई अपनी अलग-अलग राय रख सकता है….रखता ही है.”
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उपरोक्त अंश कुशवाहा कान्त के प्रसिद्द उपन्यास “लाल रेखा” से लिया गया है. कुशवाहा कान्त कभी पॉकेट बुक्स लेखन में सबसे चमकता नाम हुआ करते थे. उपरोक्त अंश से तो आप समझ ही गए होंगे कि “लाल रेखा” लाल और रेखा की कहानी है. बात उन दिनों की है जब देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था. गाँव से शहर पढने आये होनहार विद्यार्थी लालचंद ने बी.ए. की परीक्षा पास की है (जो उन दिनों निस्संदेह ही बड़ी डिग्री हुआ करती थी जब कुल आबादी का मात्र पंद्रह फीसद ही साक्षर हुआ करता था). पर देश की राजनीतिक दशा उसे विचलित कर देती है, उसका पढ़ाई में मन नहीं लगता, देशप्रेम उसे क्रान्ति के पथ की और खींचता है और लाल क्रांतिकारी संगठन – मण्डल का महत्वपूर्ण सदस्य बन जाता है.
रेखा लालचंद की सहपाठिनी है और हमेशा उससे तर्क-वितर्क करती रहती है. स्त्री-पुरुष बराबरी की बातें करने वाली रेखा से लाल का कोई भी राज छिपा नहीं रह पाता. पर एक सच्चे मित्र की तरह रेखा कभी लाल का राज फ़ाश नहीं करती. वह चाहती है कि लाल अपने विचार और क्रिया-कलापों में उसे भी सहयोगी की तरह शामिल करे, पर लाल रेखा पर भरोसा करते हुए भी अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों में बिलकुल भी शामिल नहीं करना चाहता.
पुलिस सुपरिंटेंडेंट मि. शर्मा ब्रिटिश हुकूमत के लिए नमक का फर्ज अदा करने वाले कर्तव्यनिष्ठ ऑफिसर हैं. मि. शर्मा आजकल एक युवक के पीछे पड़े हुए हैं जिसपर सरकार ने दस हजार का इनाम घोषित किया है. सरकार के पास सिर्फ इतनी सूचना है कि युवक आजकल मंडल का सबसे सक्रिय सदस्य है, पर उस युवक के बारे में और कोई जानकारी नहीं उपलब्ध है. इन्हीं मि. शर्मा की इकलौती पुत्री है रेखा.
हमेशा बहुरूप धारण किये रहने वाला मंडल का सरदार लाल को उस जज को गोली मारने का काम सौंपता है जिसने चेतावनी दी जाने के बावजूद मंडल के एक अन्य सदस्य को फांसी की सज़ा सुनाई थी. लाल जज को गोली मारने ही वाला होता है कि कोई और जज को अपनी गोली का निशाना बना लेता है. लाल वहाँ से भागता है और पीछा करती पुलिस से चूहे-बिल्ली का खेल चलता रहता है.
घायल लाल जिस गाँव में शरण लेता है उसी गाँव की नयना उसे अपना दिल दे बैठती है. नयना के लिए लाल का प्रेम सबसे ऊँचा है जिसके पाने के लिए वह बड़ी से बड़ी कुर्बानी देने से भी पीछे नहीं हटती. वहीं लाल के लिए उसका देशप्रेम सर्वोच्च है.
उपन्यास में पात्रों का चरित्र-चित्रण सजीव और विस्तृत है और सभी पात्र अपने-अपने स्थान पर सही जान पड़ते हैं. कहानी में कसाव भी है और रहस्य का पुट भी. आख़िरकार जब एक के बाद एक रहस्य खुलता है तो पाठक चकित रह जाता है.
“लाल रेखा” की रचना कुशवाहा कान्त ने तब की थी जब भारत अभी ताजा-ताजा आजाद हुआ था. उनकी इस कृति में जहां देशप्रेम को सर्वोच्च प्राथमिकता देने की बात कही गयी है – देशहित को व्यक्तिगत हितों पर तरजीह देने की बात कही गयी है, वहीं स्त्री-विमर्श और स्त्री-पुरुष समानता की भी बातें कही गयी है. निस्संदेह “लाल रेखा” अपने समय की श्रेष्ठ कृतियों में शुमार किये जाने योग्य रचना है.
एक और ख़ास बात आपसे शेयर करना चाहूंगा. आमतौर पर इब्ने सफी/“जासूसी दुनिया” को भारत में पॉकेट बुक्स को स्थापित करने का श्रेय दिया जाता है, जो कि पॉकेट बुक्स के बारे में फैली अंतहीन भ्रांतियों में से एक है. मुझे लगता है वास्तव में कुशवाहा कान्त ने ही भारत में पॉकेट बुक्स को स्थापित किया. वे अपने समय खासे लोकप्रिय रहे थे. इब्ने सफी के पहले उपन्यास प्रकाशित होने से भी पहले कुशवाहा कान्त जन्नतनशीं हो चुके थे.
lalrekh chiangari khun ka pasa book chhiye
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उपन्यास रोचक मालूम पड़ता है। कुशवाहा जी की कृतियां तो शायद अब कॉपी राइट फ्री होनी चाहिए। फिर भी ये मिलती नहीं हैं। मिलती तो अवशय पढता।
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मुझे लाल रेखा पुस्तक चाहिए
कीमत जो भी हो जिस तरीके से कहेंगे पे कर दूँगा!
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Dear Sir,
When and where can I get this book?I read it in childhood but want to read the same again. Very impressive contents.Kindly e print this book.
Regards,
Sitendra Kumar
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कुशवाहा कांत के उपन्यास बहुत रोचक होते हैं।
मैंने इनके कुछ उपन्यास पढे हैं, और कुछ मेरे पास उपलब्ध हैं।
मैं कुशवाहा कांत के समस्त उपन्यास एकत्र करना चाहता हूँ अगर किसी के पास इनके उपन्यास उपलब्ध हो तो सहयोग करें, जानकारी दें।
धन्यवाद ।
– गुरप्रीत सिंह
9509583944
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